|| पूर्वजों के प्रति श्रद्धान्जलि का महा पर्व है पितृ पक्ष ||
हम सभी जानते ही हैं कि जिस प्रकार भारतीय संस्कृति में वर्षभर में अनेक पर्वों को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है जैसे दशहरा, दीपावली, होली, रक्षाबंधन, नव-सम्बत्सर, कृष्ण-जन्माष्टमी, महा-शिवरात्रि, राम-नवमी, सीता अष्टमी, नव-रात्रि आदि-आदि| हमारे देश के महापुरुषों के भी स्मृति दिवस/पुण्य तिथि मनाये जाते हैं| इसी प्रकार दिवंगत स्वर्गीय पूर्वजों के प्रति भी वर्ष में एक बार पितृ पक्ष का पर्व होता है जो कि भाद्रपद/आश्विन मास में शरद ऋतु में आता है| इसकी अवधि 15 दिन की होती है अर्थात पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक | इसे हम श्राद्ध, श्रद्धा-पर्व या श्रद्धा-पखवाड़ा के रूप में भी जानते-मानते हैं जो पितृ पक्ष में उऋण होने का एक बहुत बड़ा और पुण्य फलदायक अनुष्ठान है जिसके द्वारा आपको अपने दिवंगत पूर्वजों का पूर्ण आशीर्वाद मिलता है|
कृष्ण-पक्ष पितरों का पक्ष होता है इसीलिए श्राद्ध सदैव इसी पक्ष में किये जाते हैं | कृष्ण पक्ष में चंद्रमा सूर्य के निकट हो जाता है, अमावस्या तिथि को भी सूर्य-चन्द्र एक ही राशि में हो जाते हैं | जो पितृ जिस तिथि को दिवंगत (निधन) हुआ हो, उस तिथि के दिन यज्ञ/हवन/अग्निहोत्र के द्वारा उस पितृ को नमन करते हुए, उसे स्मरण करते हुए तृप्त किया जाता है और परमपिता परमात्मा से प्रार्थना की जाती है कि हमारे सम्बंधित पितृ हमारे बीच नहीं हैं, हम उन्हें भावभीनी श्रद्धान्जलि देते हैं | हम जो मानव योनी में अपना-अपना जीवन यापन कर रहे हैं, उनके ही वजह से कर रहे हैं, क्योकि हम उनकी संतानें हैं | अगर पितृ न होते तो हम कहाँ से होते | हम श्रद्धा से परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि हे परमात्मा हमारे पितरों को आपने जिस-जिस भी योनि में जन्म दिया हो, उनको क्रमश: उस योनी में उत्तम आयु, उत्तम सुख, उत्तम जाति, उत्तम प्रजा, उत्तम धन-समृधि, उत्तम येश्वर्य, उत्तम कीर्ति, उत्तम वैभव, उत्तम आनंद और उत्तम शांति प्राप्त हो | अगर कारणवश आपको उनके निधन की तिथि याद न हो तो उनके लिए अंतिम श्राद्ध को अमावस्या के दिन देना चाहिए | यज्ञ द्वारा पितरों के लिए प्रार्थना करना महा अग्नि के सामने साथ मिलकर स्वयं ही कार्य करना है और हमारी आहुतियां सूक्ष्म होकर महा अग्नि के रूम में धूम बनकर परमात्मा के पास पहुँचते हैं जहाँ पर अन्तरिक्ष का वह पोल है जहाँ पर परमपिता परमात्मा बैठे होते हैं | परमात्मा हमारी प्रार्थना को हमारे पितरों को पहुंचाते हैं, जहाँ पर उनको सुख और शांति प्राप्त होती है | सूक्ष्म पितृ भी उस सूक्ष्म हवि से हमारे सूक्ष्म आत्मा की तरह तृप्त हो जाते हैं | इसका कारण है, संकल्प की महिमा, क्योंकि हवन/यज्ञ द्वारा हम श्रद्धा से हवि को तत्व के पितर के उद्देश्य से संकल्प करके यज्ञ दान करते हैं | देवता लोग हमारे मानसिक संकल्प को जान लिया करते हैं | वेद, उपनिषद, पुराण भी इसका अनुमोदन करते हैं | श्राद्ध में पितरों के लिए श्रद्धा संकल्प ही असली श्रद्धा पूजन है | अथर्ववेद में पितृ लोक का उल्लेख मिलता है – ॐ पितृनाम लोकमपी गच्चन्तु ये मृता: | इसी वेद में आगे मृत आत्मा के पितृ गण बनने के विषय में कहा गया है | ऋग्वेद सहिंता भी यह स्पष्ट कहता है कि श्राद्ध अर्थात श्रद्धा से होने से पितृ गण सदैव तृप्त हो जाया करते हैं | विष्णु पुराण में भी लिखा है कि पितृ पक्ष में पितृगण अपने सूक्ष्म आत्मा द्वारा स्वयं श्राद्ध ग्रहण करते हैं और तृप्त हो जाने पर हमें अपना आशीर्वाद पहुंचाकर हमारी समस्त कामनाओं को पूर्ण करते हैं | संतान को उसकी वंश-परम्परा से जोड़ना, श्राद्ध कर्म का भावनात्मक पक्ष समझ कर भारतीय संस्कृति में पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता स्थापित करने का जो यह अनुपम व्यवस्था है, संसार की किसी भी अन्य सभ्यता में उपलब्ध नहीं है |
यज्ञ में पितृगणों के लिए भुत्याग्य बलिवैश्वदेव यज्ञ द्वारा निम्न 10 आहुतियाँ विधिवत घी और खीर को मिलाकर डालनी चाहिए :
ॐ अग्नये स्वाहा,
ॐ सोमाय स्वाहा,
ॐ अग्निशोमाभ्याम स्वाहा,
ॐ विश्वेभ्यो देवेभ्य: स्वाहा,
ॐ धन्वन्तरये स्वाहा,
ॐ कुह्वे स्वाहा,
ॐ अनुमतये स्वाहा,
ॐ प्रजापतये स्वाहा,
ॐ द्यावाप्रिथिविभ्यम स्वाहा,
ॐ स्विष्टिक्रिते स्वाहा | |
तत्पश्चात पीपल/केले आदि पत्तों में खीर/पकोड़े/पूरी आदि रखकर यज्ञ कुंड के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, द्वार, पृष्ठ भाग, जल आदि आदि में रखकर बलिभाग देना चाहिए | तत्पश्चात बलिभाग के 6 हिस्से करें जो कि कुत्ते, पत्तित, चांडाल, पापरोगी, काक और छोटे-छोटे जीव-जंतुओं के लिये रख देवें |